Sachin Tendulkar Biography: God of Cricket

 English

दोस्तों भारत में क्रिकेट को एक खेल ही नहीं बल्कि एक धर्म का दर्जा दिया गया है और उस धर्म में सचिन भगवान की तरह पूजे जाते हैं । दोस्तों सचिन ही वह क्रिकेटर है जिसने भारतीय क्रिकेट को एक नई ऊंचाई दी और क्रिकेट के खेल को घर-घर तक पहुंचा दिया । एक समय तो ऐसा था कि सचिन के आउट होते ही आधा भारत टीवी बंद कर देता था और क्रिकेट में सचिन को भगवान का दर्जा देना शायद इसलिए भी सही है क्योंकि अगर रिकॉर्ड्स की बात करें तो सचिन के आसपास भी कोई नहीं भटकता सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड हो या शतक मारने का या फिर चौका लगाने का ही क्यों ना हो? सचिन हर रिकॉर्ड में सबसे आगे हैं एक बार तो सचिन तेन्दुलकर की तारीफ में एक ऑस्ट्रेलियाई प्रशंसक ने कहा कि " अपराध तब करो जब सचिन बैटिंग कर रहा हो क्योंकि भगवान भी उस समय उनकी बैटिंग देखने में व्यस्त होते हैं।" सचिन भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित होने वाले पहले खिलाड़ी हैं और इसके अलावा उन्हें राजीव गाँधी खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है । सचिन एक अच्छे खिलाड़ी होने के साथ ही साथ एक अच्छे इंसान भी हैं वे हर साल दो सौ बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी के लिए " अपनालय " नाम की एक गैर-सरकारी संगठन भी चलाते है।

दोस्तों अब हम बिना समय गवाएं सचिन तेंदुलकर के बचपन से लेकर क्रिकेट में उनकी अद्भुत सफलता तक के सफर को शुरू से जानते हैं ।

सचिन रमेश तेंदुलकर का जन्म 24 अप्रैल 1973 को राजापुर के एक मिडिल क्लास मराठी फैमिली में हुआ था उनके पिता का नाम रमेश तेंदुलकर था जो एक लेखक और प्रोफेसर थे और उनकी माँ का नाम रजनी तेंदुलकर था जो एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करती थी । यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि सचिन तेंदुलकर अपने पिता रमेश तेंदुलकर की दूसरी पत्नी के पुत्र हैं ।रमेश तेंदुलकर की पहली पत्नी से तीन संतानें हुईं अजीत, नितिन और सविता, जो कि तीनों सचिन से बड़े हैं । सचिन तेंदुलकर का नाम उनके पिता रमेश तेन्दुलकर ने अपने प्रिय संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था ।सचिन को क्रिकेट का शौक बचपन से ही है, लेकिन शुरू से ही वह बहुत ही शरारती बच्चों में गिने जाते थे जिसकी वजह से अक्सर स्कूल के बच्चों के साथ उनका झगड़ा होता रहता था ।सचिन की शरारतों को कम करने के लिए उनके बड़े भाई अजीत ने उन्हें 1984 में क्रिकेट अकैडमी ज्वॉइन कराने का सोचा और रमाकांत आचरेकर के पास लेकर गए । रमाकांत आचरेकर उस समय के प्रसिद्ध कोच में गिने जाते थे लेकिन सचिन पहली बार उनके सामने अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और आचरेकर ने उन्हें क्रिकेट सिखाने से मना कर दिया लेकिन बड़े भाई अजीत के रिक्वेस्ट पर आचरेकर ने फिर से एक बार सचिन का मैच देखा, लेकिन इस बार वे सचिन को एक पेड़ के पीछे छुपकर देख रहे थे और तब सचिन ने बहुत अच्छा मैच खेला था जिससे उन्हें पता चल गया कि सचिन केवल हमारे सामने खेलने में असहज महसूस कर रहे हैं और फिर उन्होंने सचिन को अपने अकैडमी में ले लिया और क्रिकेट सीखाना शुरू कर दिया । आगे चलकर आचरेकर को सचिन के बैट पकड़ने के तरीके से प्रॉब्लम थी क्योंकि सचिन बैट को बहुत नीचे से पकड़ते थे और आचरेकर के हिसाब से इस तरह से बैट पकड़ने पर अच्छे शॉर्ट नहीं लगाए जा सकते थे इसीलिए उन्होंने सचिन को बैट को थोड़ा ऊपर पकड़कर खेलने के लिए कहा लेकिन इस बदलाव से सचिन कम्फर्टेबल फील नहीं कर रहे थे और इसीलिए उन्होंने आचरेकर से रिक्वेस्ट किया कि उन्हें नीचे बैट पकड़कर ही खेलने दें । दरअसल, बचपन में सचिन अपने बड़े भाई के बैट से खेलते थे और उनके छोटे-छोटे हाथों से बड़ी बैट को पकड़ने में बहुत दिक्कत होती थी और वह उस बैट को संभालने के लिए बहुत नीचे से पकड़ते थे वहीं से उन्हें बैट को नीचे से पकड़ने की आदत हो गयी 


आचरेकर तेंदुलकर की प्रतिभा से बहुत ही प्रभावित थे और इसीलिए उन्होंने सचिन को सिद्धाश्रम विद्या मंदिर में पढ़ाई के लिए शिफ्ट होने के लिए कहा क्योंकि वहां पर क्रिकेट की बहुत अच्छी टीम थी और उन्होने देखा था की सचिन को अगर एक अच्छा माहौल मिले तो वो कुछ भी कर सकते हैं । तेंदुलकर ने भी अपने कोच के कहने पर उस स्कूल में एडमिशन ले लिया और एक प्रोफेशनल टीम के साथ क्रिकेट खेलने लगे ।वह वहां पढ़ाई के साथ-साथ शिवाजी पार्क में रोज़ सुबह शाम आचरेकर की देखरेख में प्रैक्टिस करते थे । सचिन को प्रैक्टिस कराते समय उनके कोच स्टंप पर एक सिक्का रख देते थे और दूसरे खिलाड़ियों को कहते थे कि वह सचिन को बॉलिंग करें जो खिलाड़ी सचिन को आउट कर देगा सिक्का उसका अगर सचिन को कोई भी खिलाड़ी आउट न कर सका तो सिक्का सचिन का होता था । सचिन के पास आज भी उनमें से तेरह सिक्के हैं, जिन्हें वह सबसे बड़ा इनाम मानते हैं । 


सचिन की मेहनत और प्रैक्टिस के दम पर उनका खेल बहुत ही जल्दी निखर गया और वह लोगों के लिए चर्चा का विषय बन गए उन्होंने अपनी स्कूल टीम की तरफ से मैच खेलने के साथ ही साथ बम्बई के प्रमुख क्लबों से भी खेलना शुरू कर दिया । शुरू-शुरू में सचिन को बॉलिंग का बहुत शौक था, जिसकी वजह से 1887 में वे चौदह साल की उम्र में बॉलिंग सीखने के लिए मद्रास के एमआरएफ पेस फाउंडेशन ( MRF Pace Foundation) गए  जहां ऑस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाज डेनिस लिली ट्रेनिंग देते थे लेकिन उन्होंने सचिन को बैटिंग सीखने का सुझाव दिया क्योंकि वह बैटिंग में अच्छा परफॉर्मेंस कर रहे थे और फिर सचिन ने भी उनकी बात मान ली और फिर अपने बैटिंग की तरफ ज्यादा ध्यान देने लगे ।दोस्तों बता दूँ कि लिली ने जिन खिलाड़ियों को तेज गेंदबाज बनने से मना किया, उसमें सौरव गांगुली भी शामिल थे कुछ महीनों के बाद बेस्ट जूनियर क्रिकेट अवॉर्ड मिलने वाला था, जिसमें चौदह साल के सचिन की बड़ी दावेदारी मानी जा रही थी लेकिन उन्हें वह इनाम नहीं मिला जिससे वह बहुत दुखी हुए और तभी उनका मनोबल बढ़ाने के लिए पूर्व भारतीय बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने उन्हें अपने पैड की एक जोड़ी दे दी । तेन्दुलकर ने लगभग बीस साल बाद 34 टेस्ट शतक की गावस्कर के विश्व रिकॉर्ड को पीछे छोड़ने के बाद इस बात का जिक्र किया था उन्होंने कहा कि यह मेरे लिए उस समय प्रोत्साहन का सबसे बड़ा स्रोत था ।


14 नवंबर 1987 को तेन्दुलकर को रणजी ट्राफी के लिए भारत के घरेलू फर्स्ट क्लास क्रिकेट टूर्नामेंट में मुंबई की तरफ से खेलने के लिए चुना किया गया लेकिन वह अंतिम ग्यारह में किसी भी मैच में नहीं चुने गए उनका इस्तेमाल उस पूरी सीरीज में केवल रिप्लेसमेंट फील्डर के लिए किया गया था ।एक साल बाद 11 दिसंबर 1988 को सिर्फ 15 साल और 232 दिन की उम्र में तेंदुलकर ने अपने कैरिअर की शुरुआत मुंबई की तरफ से खेलते हुए गुजरात के खिलाफ़ की, जिस मैच में उन्होंने नाबाद शतक बनाया और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में अपने पहले ही मैच में शतक बनाने वाले सबसे युवा खिलाड़ी बन गए और फिर 1988_89 के सेशन में वे पूरे सीरीज में मुंबई की तरफ से सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी बने। उसके बाद भी उनकी शानदार परफॉर्मेंस जारी रही और उन्होंने दिल्ली के खिलाफ़ इरानी ट्रॉफी ( Irani Trophy ) में भी नाबाद शतक बनाया उस समय विशेष भारत के लिए खेल रहे थे । सचिन तेंदुलकर ने रणजी, दलीप और इरानी ट्रोफ़ी में अपने पहले ही मैच में शतक जमाया था और ऐसा करने वाले वे भारत की एकमात्र बल्लेबाज हैं उनका यह रिकॉर्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है ।

सचिन के जादुई खेल को देखते हुए सिर्फ 16 साल की उम्र में उनका सलेक्शन भारतीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट टीम ( Indian National Cricket Team) में किया गया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनके सेलेक्शन का श्रेय राज सिंह डुंगरपुर को दिया जाता है जो कि उस समय के सिलेक्टर थे।

तेन्दुलकर नवम्बर 1989 में सिर्फ सोलह साल और 205 दिनों की उम्र में कराची में पाकिस्तान के खिलाफ़ अपने टेस्ट करियर की शुरुआत की। इससे पहले भी भारतीय चयन समिति ने वेस्टइंडीज़ के दौरे के लिए सचिन के सेलेक्शन की इच्छा जताई थी, लेकिन वह नहीं चाहते थे कि सचिन को इतनी जल्दी वेस्ट इंडीज के तेज गेंदबाजों का सामना करना पड़े और इसीलिए उन्होंने सचिन को थोड़ा और समय दे दिया था । कराची में सचिन ने इंडिया क्रिकेट टीम की तरफ से पाकिस्तान के खिलाफ़ पहला मैच खेलते हुए 15 रन बनाए इसी सीरीज के एक मैच में सचिन के नाक पर बॉल लग गई थी, जिसकी वजह से उनकी नाक से खून आ गया लेकिन फिर भी वह रुके नहीं और पूरा मैच खेला। उस मैच में उन्होंने 54 रन बनाए थे सचिन ने 1992-1993 में अपना पहला घरेलू टेस्ट मैच इंग्लैंड के खिलाफ़ भारत में खेला जो उनका टेस्ट करियर का 22वां टेस्ट मैच था । इसके बाद ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के टेस्ट मुकाबलों में भी सचिन का प्रदर्शन बहुत ही जबरदस्त रहा और उन्होंने कई टेस्ट शतक भी जड़े हालांकि सचिन को एकदिवसीय मैच में अपना पहला शतक लगाने के लिए 79 मैचों का इंतजार करना पड़ा था, लेकिन एक बार लय में आने के बाद सचिन ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने जादुई बल्लेबाजी से क्रिकेट जगत के सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया ।

 सचिन एकमात्र खिलाड़ी हैं जिनके खाते में अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट करियर ( International Cricket Career ) में सौ शतक बनाने का विश्व रिकॉर्ड हैं उन्होंने रिकॉर्ड 51 शतक टेस्ट क्रिकेट में और 49 शतक वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट में बनाए हैं।

 एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट इतिहास में दोहरा शतक जड़ने वाले वह पहले खिलाड़ी हैं साथ ही साथ सचिन सबसे ज्यादा वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट मैच खेलने वाले भी खिलाड़ी हैं उन्होंने कुल 463 वनडे खेले हैं । सचिन को क्रिकेट में उनकी अद्भुत योगदान के लिए उन्हें बहुत सारे पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है 

1997-1998 में उन्हें खेल जगत के सर्वोच्च पुरस्कार राजीव गाँधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया 

 1999 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।

 2008 में उन्हें पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है 

2013 में भारतीय डाक विभाग ने उनके नाम का डाक टिकट जारी किया इस सम्मान से सम्मानित होने वाले वह एकमात्र क्रिकेटर हैं 

2014 में सचिन को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया भारत रत्न से सम्मानित होने वाले वह पहले खिलाड़ी हैं ।

वनडे क्रिकेट में बल्लेबाजी के लगभग सभी रिकॉर्ड अपने नाम करने के बाद 23 दिसम्बर 2012 को सचिन ने वनडे क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी और फिर 16 नवंबर 2013 को अपने घरेलू मैच वानखेड़े स्टेडियम में उन्होंने अपना अंतिम टेस्ट मैच खेला । इस टेस्ट मैच को जीतकर भारतीय टीम ने उन्हें भावपूर्ण विदाई दी ।

अगर सचिन की पर्सनल लाइफ की बात करें तो 1995 में उन्होंने अंजलि तेंदुलकर से शादी की उनके दो बच्चे भी हैं जिनका नाम सारा और अर्जुन हैं । 

सचिन अपने शांत और सरल स्वभाव के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है गुस्से में आकर वे कोई टिप्पणी करने की बजाय किसी टिप्पणी का जवाब अपने बल्ले से देने में विश्वास रखते थे । दोस्तों सचिन ने क्रिकेट में भगवान का दर्जा अपनी मेहनत, अपनी कोशिश अपनी लगन से हासिल की उन्होंने क्रिकेट को इस तरह खेला कि वह सिर्फ खेल ना रहकर एक प्रेरणा बन गया 







Comments

Popular posts from this blog

Virat Kohli's Biography

KL Rahul Biography